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मंगलवार, फ़रवरी 07, 2012

हम तो चले तिहाड़ जेल दोस्तों !

 आज में सरकार से इस पोस्ट के माध्यम से पूछना/जानना  चाहता हूँ कि अगर एक सभ्य ईमानदार व्यक्ति दिल्ली पुलिस के अधिकारियों को रिश्वत नहीं दें तो क्या वो अधिकारी मात्र एक महिला के कहने से बिना सबूतों के ही गम्भीर आरोप लगाकर मामला दर्ज कर सकता है ? क्या किसी व्यक्ति का पक्ष सिर्फ रिश्वत देने पर ही सुना जायेगा? क्या सारी महिलाएं सच्ची है और सारे पुरुष झूठे व अत्याचारी होते हैं? 
मेरा भारत देश की न्याय व्यवस्था से विश्वास ही उठ गया है. अब आप मुझे बेशक मेरे खिलाफ झूठी एफ.आई.आर के संदर्भ में फांसी की सजा दे दें. मैं वोट की राजनीति खेलने वाले देश में अपनी हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में "अपील" या "दया याचिका" भी नहीं लगाऊंगा. भारत देश की न्याय व्यवस्था अफजल गुरु और कसाब जैसे अपराधी के अधिकारों की रक्षा करती है. यहाँ संविधान की धाराओं का लाभ सिर्फ अमीरों व राजनीतिकों मिलता है या दिया जाता है. जिनके पास वकीलों की मोटी-मोटी फ़ीस देने के लिए और संबंधित अधिकारियों को मैनेज करने के लिए लाखों-करोड़ों रूपये है. गरीबों को "न्याय" देना न्याय व्यवस्था के बस में ही नहीं है. मुझे आज भारत देश की न्याय व्यवस्था की कार्य शैली पर बहुत अफ़सोस हो रहा है. न्याय व्यवस्था की अब तक की कार्यशैली के कारण भविष्य में मुझे न्याय मिलने की उम्मीद भी नहीं है. अपने खिलाफ दर्ज केस के संदर्भ में बस इतना ही कहना है कि -
१. हाँ, मैंने बिना दहेज लिये ही कोर्ट मैरिज करके बहुत बड़ा अपराध किया है.
२. हाँ, मैंने कोर्ट मैरिज करके अपने माता-पिता का दिल दुखाकर भी बहुत बड़ा अपराध किया है.
३. हाँ, मैंने अपनी पत्नी की बड़ी-बड़ी गलती पर उसको माफ़ करके बहुत बड़ा अपराध किया है.
४. हाँ, मैंने अपनी पत्नी को मारने के उद्देश्य से कभी भी ना छूकर बहुत बड़ा अपराध किया है.
५. हाँ, मैंने गरीब होते हुए भी भारत देश की न्याय व्यवस्था से "न्याय" की उम्मीद करने का अपराध किया है. 
 तिहाड़ जेल में हमारे पास न मोबाईल होगा और न फेसबुक होगी. तब मेरे पास क्या होगा, यह जानने के लिए नीचे लिखा पत्र देखें.


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