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शनिवार, जून 11, 2011

माननीय राष्ट्रपति जी मुझे इच्छा मृत्यु प्रदान करके कृतार्थ करें

 कदम-कदम पर भ्रष्टाचार ने अब मेरी जीने 
की इच्छा खत्म कर दी है-सिरफिरा 
मेरा मानना है कि जिंदगी की सबसे बड़ी शर्त है स्वस्थ तन और निर्मल मन.हमारी जिम्मेदारी तन को तन्दुरुस्त रखना तो है ही साथ ही हमारी निरंतर कोशिश मन को भी सारे प्रदूषण से बचाने की हो.प्रदूषित मन का होना स्वस्थ तन से समझौता करना है. जब कोई भी शरीर इस हालत मैं पहुँच गया हो कि उसका जीर्णोंध्दार नहीं हो सकता है तब उसे त्यागने में हर्ज नहीं है. जिंदगी जीने की जिन्दा दिली मैं इतनी ताकत हो कि वह मौत से भी न डरे. इन दिनों मेरा मन और तन सही नहीं रहता है, क्योंकि जो समय समाज और देशहित मैं चिंतन करते हुए कार्य करता था वो ऐसी परेशानियों मैं फंसा हुआ है. जहाँ से एक ईमानदार और सभ्य व्यक्ति निकलना आसान नहीं होता है. जब पूरा भारत देश का हर विभाग भ्रष्टाचार से ग्रस्त हो. तब मुशिकलों का कम होना जल्दी संभव नहीं होता है. अत: मैंने जो भी कदम उठाया है. वो सब मज़बूरी मैं लिया गया निर्णय है. हो सकता कुछ लोगों को यह पसंद न आये लेकिन जिस पर बीत रही होती हैं उसको ही पता होता है कि किस पीड़ा से गुजर रहा है. कहते हैं वो करो, जो मन को अच्छा लगे और उससे किसी का अहित न हो.   
                                                          

2 टिप्‍पणियां:

  1. जैन साहब
    आप बाबा रामदेव के साथ मिल जाओ,
    शायद उसके बाद आपको, इस पत्र को लिखने की जरुरत नहीं पडेगी?


    मेरी नजर में तो आदमी को आत्महत्या नहीं करनी चाहिए, यदि ज्यादा ही मजबूरी है तो जिन लोगों की वजह से ऐसा काम करना पड रहा है, पहले उन्हे मिटा देना चाहिए, फ़िर चैन से मरो?

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